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एन सी डब्ल्यू पी

बीपीआर एण्ड डी के तत्वाधान में पुलिस में महिलाओं का राष्ट्रीय सम्मेलन (एनसीडब्लयूपी) आयोजित किया गया। गृह मंत्रालय द्वारा यह मंच वर्दीधारी महिलाओं की शिकायतों को सुनने के लिए आयोजित कराया गया ताकि उनकी कार्यशक्ति में वृद्धि कर उसका इष्टतम उपयोग करने के लिए उनके लिए बेहतरीन अनुकूल वातावरण सृजित किया जा सके। एक सशक्त निकाय बनाने की जरुरत काफी समय से महसूस की जा रही थी जो महिला पुलिस अधिकारी बनाने की क्षमता को देखे और विशुद्ध व्यावसायिकता अर्जित करने के लिए मुख्य पुलिस कार्यों में पर्याप्त एक्सपोजर उपलब्ध कराए। एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. ने इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सभी तरह के प्रयास सुनिश्चित किए, सभी हल खोल दिए। इस प्रयत्नों की वृद्धी की शुरुआत बी पी आर एण्ड डी द्वारा दिल्ली पुलिस के मेजवान संगठन होने के सहयोग से नई दिल्ली में वर्ष 2002 में एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. का पहला संस्करण करके कर दी थी। सभी राज्यों/यूटी/ केन्द्रीय अर्दधसैनिक बलों को सभी पदों पर कार्यरत महिला पुलिस अधिकारियों/ कर्मचारियों ने बड़े उत्साह के साथ इस सम्मेलन में वर्दीधारी सेवाओं के बारे में अपनी आवाज रखने के लिए भाग लिया क्योंकि यह सेवाएं सामान्यतः पुरुष प्रधान की होती हैं।

एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. द्वारा सभी पुलिस संगठनों/ केन्द्रीय अर्धसैनिक बलों में यौन उत्पीडन के लिए बनाए गए तंत्र को सक्रिय अर्थोपाय सुझा कर सशक्त बनाने व उस पर निगरानी रखने के लिए लगातार काम किया है। लिंग संबोदिता से जुड़े हुए विषयों तथा सभी पुलिस पदों विशेषकर महिला पुलिस के लिए आधारभूत संरचना जैसे आराम कक्ष, शौचालय, शिशुसदन आदि का निर्माण , कैरियर नियोजन में महिलाओं के लिए समान अवसर और प्रसूती, बच्चे की देखभाल के लिए अवकाश , पुलिस आवास आदि अन्य कल्याणकारी उपायों पर ठोस व ईमानदारी से प्रयास किए गए।

एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. के प्रथम आयोजन के सफल होने के उपरान्त हमारे देश के भिन्न-भिन्न भागों में पांच और सम्मेलन आयोजित हुए। एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. का दिव्तीय सम्मेलन, उत्तराखंड (2005)। बी पी आर एण्ड डी, गृह मंत्रालय के सक्रिय सहयोग से तथा पूरी मीडिया की उपस्थिति में तृतीय एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. , हरियाणा (2009), चौथा एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी., ओडीसा (2010) पांचवा एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी., केरल (2012), और छठा एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. असम (2014) में आयोजित हुआ ।

एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. केसातवें संस्करण के आयोजन की जिम्मेदारी के.रि.पु.बल को यह देखते हुए सौंपी गई थी कि इस बल में विशेषकर पांच महिला बटालियनें व आर.ए.एफ. में महिला टुकड़ियाँ होने से महिलाओं की पर्याप्त संख्या है। 88 बटा0 केरिपुबल द्वारा हाल ही में रजत जयन्ती मनाई है और अब यह इस सम्मेलन की मेजबानी करके एक और उपलब्धि अर्जित करने की ओर अग्रसर है।

एन.सी.डब्‍ल्‍यू.पी. को मिली व्यापक सफलता को, इसमें सभी पदों की महिलाए अधिकारियों, जिनके पास पुलिस बलों में महिलाओं के मूल्यों में वृद्धि करने के लिए सम्मेलन में एक-दूसरे से साझा करने के लिए ठोस सुझाव थे, उनकी बड़ी संख्या में भागीदारी से मापा जा सकता है। परिणामस्वरूप, पुलिस बलों में अपनी सख्या बढ़ाने और भिन्न भिन्न अनुशंसाओं को मूल भावना सहित कार्यान्वित करने के लिए महिलाएं केन्द्रीय और राज्य सरकारों से अपने अनुकूल कानून बनाने में सफल हो गई हैं। इस प्रकार, कुल मिलाकर, महिला पुलिस के उत्थान और अपने पुरूष सहयोगियों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने कि नई आशाओं का भरोसा मिल गया है।

पुलिस में महिलाओं का प्रतिनिधितव व संख्या

केरल भारत के राज्यों में से सबसे पहला ऐसा राज्य था जहां पुलिस बल में महिला थी। यह प्रथम महिला सन् 1933 में तत्कालीन ट्रॉवनकोर रॉयल पुलिस में शामिल हुई थी। इसके बाद वह भी केवल स्वतंत्रता के पश्चात, देश के अन्य राज्यों की पुलिस में महिलाएं भर्ती पुलिस सेवा में नियुक्ति तक जारी रही। वर्ष 1981 में जब राष्ट्रीय पुलिस आयोग अपनी आठवीं रिपोर्ट समाप्त कर रहा था तब देश की पुलिस में महिलाओं की संख्या मात्र 3000 या कुल पुलिस का 0.4 प्रतिशत थी।

भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा सुधार की अपेक्षा दुगनी हुई। विशेषकर नौजवान युवती के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या।

वर्ष 2012 में दिल्ली में महिलाओं के रोजमर्रा जीवन में अनेक खतरे उभर कर सामने आए। इसने महिलाओं के विरुद्ध हो रही हिंसा की समस्या और पुलिस में महिलाओं की और अधिक संख्या होने की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित किया। अपने आप में ही अनेक विविधता होने के बावजूद यह महसूस किया कि महिलाओं की अधिक संख्या आंतरिक संस्कृति में परिवर्तन लाए जाने के माध्यम से महिलाओं के प्रति पुलिस की प्रतिक्रिया में संवेदनशीलता व गुणता में सुधार लाया जा सकता है। इसके बाद से संख्या में मामूली वृद्धि हुई दिखाई भी दी किंतु जैसे ही मामले की गर्माहट में कमी आई तब संशोघित प्रतिक्रिया की कम से कम शर्त के रूप में महिलाओं को अधिक संख्या में आगे लाने के प्रयासों में कमी आई और महिलाओं को सेवाओं में शामिल करने की गति भी धीमी हो गई। आम पुलिस संख्या के आंकड़े और विशेष तौर पर महिला पुलिस के आंकड़े पुलिस ब्यूरो द्वारा एकत्रित करके प्रकाशित किए गए हैं।

वर्ष 2005 से अनुसंधान एवं विकासः दिनांक 01.01.2014 को भारत में 1.22 अरब जनसंख्या के लिए पुलिस की कुल नफरी 1,722,786.81 थी। प्रत्येक 708 लोगों पर लगभग एक पुलिस अधिकारी का अनुपात बैठता था।

यदि महिलाओं की बात की जाए तो भारत में 105,325 महिला पुलिस अधिकारी हैं जो निम्न विवरणानुसार पुलिस की 11 प्रतिशत औसत के बराबर हैः-

कुल पुलिस बलों की प्रतिशतता के रूप में राज्य-वार महिला पुलिस की नफरी:

राज्य/के0 शासित कुल पुलिस बल कुल महिला पुलिस (संख्या) पुलिस की % के रूप में कुल महिला पुलिस पद (1-35, उच्च-निम्न स्तरीय)
चण्डीगढ़ 7,181 1,017 14.16% 1
तमिलनाडु 1,11,448 13,842 12.42% 2
अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह 3,947 445 11.27% 3
हिमाचल-प्रदेश 14,024 1,552 11.07% 4
महाराष्ट्र 1,71,359 17,957 10.48% 5
दादरा एवं नगर हवेली 261 26 9.96% 6
दमन एवं दीव 373 34 9.12% 7
ओडीशा 51,396 4,381 8.52% 8
उत्तराखड 1,8,187 1,528 8.4% 9
मणिपुर 24,832 2,040 8.22 10
सिक्किम 4,281 333 7.78% 11
दिल्ली 75,704 5,413 7.15% 12
राजस्थान 92,330 6,568 711% 13
हरियाणा 41,112 2,734 6.65% 14
पंजाब 73,782 4,761 6.44% 15
केरल 47,782 3,067 6.42% 16
गोआ 5,924 366 6.18% 17
लक्षद्वीप 264 16 6.06% 18
मिजोरम 9,895 568 5.74% 19
पुडुचेरी 3,143 165 5.25% 20
अरूणाचल प्रदेश 11,247 582 5.17% 21
झारखंड 56,439 2,906 5.15% 22
कर्नाटक 72,011 3,682 5.11% 23
मध्य-प्रदेश 86,946 4,190 4.82% 24
पश्चिम बंगाल 79,476 3,791 4.77% 25
आंध्र प्रदेश 1,06,635 4,622 4.33% 26
छत्तीसगढ़ 54,693 2,348 4.29% 27
उत्तर-प्रदेश 1,68,851 7,238 4.29% 28
गुजरात 74,023 2,691 3.64% 29
बिहार 68,819 2,341 3.4% 30
त्रिपुरा 23,619 777 3.29% 31
जम्मू व कश्मीर 72,196 2,252 3.12% 32
मेघालय 11,453 329 1.87% 33
नगालैण्ड 24,030 253 1.05% 34
असम 55,033 510 0.93% 35
संपूर्ण भारत 17,22,786 1,05,325 6.11  

वर्षवार महिला पुलिस की कुल प्रतिशतता

2014 2013 2012 2011 2010 2009 2008
1,05,325 97,518 84,479 71,756 66,153 56,667 57,466
6.11% 5.87% 5.3% 4.6% 4.2% 6% 3.9%

उसी प्रकार, राज्यों और केन्द्रीय शासित प्रदेशों के भीतर कुछेक उल्लेखनीय सुधार के साथ आंकड़ों में मामूली वृद्धि हुई है। दिनांक 01.01.2014 को चण्डीगढ़ (14.16%), तमिलनाडु (12.42%) और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में (11.27%) महिला पुलिस का उच्च स्तरीय प्रतिनिधित्व दर्ज किया गया। जबकि असम (0.93%), नगालैण्ड (1.05%) और मेघालय (2.87%) के साथ सबसे पीछे थे। गत कुछेक वर्षो के रिकार्ड को देखने पर यह पता चलता है कि चण्डीगढ़, तमिलनाडु और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में महिलाओं द्वारा भर्ती करने में निरंतर बेहतरीन कार्य किया है जबकि नागालैण्ड और असम इस टेबल के एकदम नीचे पायदान पर है।

इस रिपोर्ट के आधार पर राज्यों के किए गए दौरे के दौरान संख्या का सूक्ष्मता से अध्ययन करने पर आंकड़ों में कुछ वृद्धि हुई दिखाई दी :-

  • मेघालय में वर्ष 2008में महिला पुलिस अधिकारियों की नफरी 174थी जिसे उसने बढ़ाकर 2014 में 329 कर दिया और इस तरह इसे लगभग दुगुना बढ़ाने में सफल रहा।
  • हरियाणा ने अपनी संख्या में दुगुनी बढ़ोतरी की है और वर्ष 2008 में 1358 में 1358 / 2.7% की तुलना में वर्ष 2014 में 2734/6.65% वृद्धि करके महिला अधिकारियों की प्रतिशतता में लगभग तिगुनी बढ़ोतरी कर ली है। वर्ष 2011-12 से लगभग 100 अतिरिक्त अधिकारियों की विशिष्ट बढ़ोतरी से प्रतिशतता 4.9% से बढ़ कर 7.5% तक हो गई।
  • झारखण्ड में 1701से 2906तक की वृद्धि हुई है। वर्ष 2013 और 2014 से लगभग 1000 अतिरिक्त अधिकारियों की विशिष्ट बढ़ोतरी से प्रतिशतता3.4% से 5.15% तक हो गई।
  • केरल इन वर्षो के दौरान किसी भी प्रकार की विशेष बढ़ोतरी या कमी के बिना स्थिर ही रहा। वर्तमान में केरल में महिला अधिकारियों की संख्या 3067 है जो बल के 6.42% प्रतिशत के बराबर है।
  • राजस्थान ने अपनी संख्या में दुगुनी बढ़ोतरी की है और वर्ष 2008 में 4%/2,7662 की तुलना में वर्ष 2014में 7.11%/6,568 तक वृद्धि करके महिला अधिकारियों की प्रतिशतता में लगभग तिगुनी बढ़ोतरी कर ली है।

Many states have acted on the MHA’s advisories to adopt a reservation policy for women in police forces. To date 12 states- Maharashtra, Rajasthan, Tamilnadu, Odisha, Bihar, Sikkim , Gujarat, Madhyapradesh , Jharkhand, Tripura, Telengana and Uttarakhand – and the centre (for all seven union territories) have a reservation policy of 30% or more for women in their police forces.

राज्य आरक्षण % वर्ष
महाराष्ट्र 30% 1971
राजस्थान 30% 1989
तमिलनाडु 30% 1989
ओडीशा 33% 1992
बिहार 35% 2013
सिक्किम 30% 2013
गुजरात 33% 2014
मध्य प्रदेश 30% 2014
उत्तराखंड 15% 2014
झारखंड 33% 2015
केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए 33% 2015
त्रिपुरा 30% 2015
तेलंगाना 35% 2015

सामान्यत: आरक्षण सिपाही और उप निरीक्षक पदों की भर्ती के शुरूआती स्तर पर लागू होती है। शुरू से लेकर अंत तक, यद्यपि, लक्ष्य कागजों पर सुस्पष्ट तौर पर रहता है किंतु उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कहीं पर भी कोई विस्तृत भर्ती योजना या समय-सीमा तय नहीं है। इसी कारण से, यहां तक कि उन राज्यों में जिन्होने दशकों पहले पुलिस में महिला आरक्षण की नीति को अपना लिया था उनमें भी अभी तक महिलाओं के प्रतिनिघित्व की प्रतिशतता अभी भी 33% से काफी दूर अधिकतम केवल 12% प्रतिशत ही दर्ज की गई है। महाराष्ट्र में वर्ष 1971 से आरक्षण 30% है (आज तक सबसे अधिक 44 वर्ष हो गए हैं) किंतु पूरे बल में महिला पुलिस की संख्या केवल 10% है। तमिलनाडु को 26 वर्ष की बाद 12% है और इसी समयावधि में राजस्थान की मात्र 7% हुई है और ओडीशा की तो 23 वर्ष बाद यहां तक कि 10% भी नहीं हुई है। मामूली तौर पर आंक़ड़ों में वृद्धि होने के बावजूद यह नगण्य दिखाई देने वाले आंकड़ें पुलिस विभाग में वास्तव में महिलाओं की संख्या पूरी करने के लिए इस विषय में प्राथमिकता दिए जाने के अभाव को प्रकट करती है।

आगे, आरक्षण नीति को अपनाने का अर्थ सदैव यह नहीं होता कि पुलिस के उच्चाधिकारियों और राजनीतिक नेतृत्व से महिलाओं को वास्तविक सही स्वीकृति मिल जाएगी। मध्य-प्रदेश के मुख्य मंत्री की राज्य पुलिस में महिला आरक्षण को 30% से 33% तक बढ़ाने की घोषणा के बाद पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग दोनों ने इस पर यह कहते हुए आपत्ति जताई कि पुलिस का अघिकांश काम-काज पुरुष कार्मिकों द्वारा ही किया जाता है इसलिए पुलिस में महिलाओं की संख्या का बढ़ाना बल के लिए अहितकर होगा। महिलाओं के प्रति बहुत ही गहन संवेदना रखने के बावजूद महिलाओं के बारे में भेदभावपूर्ण रवैया अभी भी पुलिस, मुख्य नीति की पहलों में महिलाओं के प्रवेश को रोक सकता है।

ऐसे कई पहलें हुई हैं जिनके द्वारा पुलिस में महिलाओं से संबंधित विषयों के आधार पर अनुसंधान, विचार-विमर्श, स्टेकहोल्डर का संयोजन और अनुशंसा तैयार किए जाने के कार्य हुए। यद्यपि यह अपने आप में सकारात्मक प्रयास रहे हैं किंतु काम और गृह जीवन में विशेष कार्यों जिन्हें अधिकांश महिलाओं को छोड़ना पड़ता है उनमें तुलन बैठाने के कार्यान्वयन की धीमी गति द्वारा यह बीच में ही अटका दिए गए। इसकी जांच और निगरानी किए जाने की आवश्यकता है।

पुलिस विभाग में पदोनति के बारे में अनेक समस्याएं ऐसी हैं जो पुलिस में महिलाओं को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। सबसे पहले, विभाग के भीतर पदोनतियां समस्याओं के दलदल में फंसी हुई है। वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन रिपोर्ट और वरियता सूचियां जिनके आधार पर अधीनस्थ पदों की पदोनतियां आधारित होती हैं वह समय पर पूरी नहीं होती हैं। लम्बी देरी ने अनेक पुरुष और महिला दोनों अधिकारियों की पदोनति के अवसरों को धूमिल किया है। हवलदार या उप निरीक्षक के पद के कार्मिक के बारे में यह आम सुनने को मिलता है कि इसे एक ही पद पर 20 वर्ष से अधिक सेवा करते हो गए हैं। मूल्यांकन प्रणाली और पदोनति में विषयनिष्पक्षता और समानता के अभाव की चिंता की आवाज काफी पहले वर्ष 1981 में ही राष्ट्रीय पुलिस आयोग द्वारा उठा दी गई थी जिसमें अभिलेख प्रबंधन के रखरखाव की कमियों और मूल्यांकन प्रपत्रों को भरने में पूर्वाग्रह और पक्षपात की गुंजाइश को उजागर किया गया था। आयोग द्वारा तंत्र को योग्यता आधारित व पेशेवर बनाने के लिए इसमें परिवर्तन की पुरजोर वकालत की थी, तथापि, अधिकांश राज्यों द्वारा इन अनुशंसाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

महिला पुलिस के लिए तो समस्या आगे और चौगुणी बढ़ जाती है क्योंकि अधीनस्थ पदों पर महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग कॉडर सिस्टम है। महिला पुलिस के लिए हवलदार, उप निरीक्षक और निरीक्षकों के केवल कुछेक चुनिंदा पद आबंटित किए जाते हैं परिणामस्वरूप पदोनति के अवसर काफी कम हो जाते हैं। एक पुरुष सिपाही अपने कॉरियर के दौरान उप निरीक्षक तक के पद तक पहुंच सकता है किंतु हवलदार और उप निरीक्षक के कुछ ही पद महिलाओं को देने से बहुत कम महिला सिपाही पदोन्‍नत हो सकती हैं। सभी पदों पर महिलाओं के आंकड़े दिखाते हैं कि अधिकांश महिलाओं का जमावड़ा निम्न पदों पर ही है। भारत में पुलिस में महिलाओं की उच्च पदों पर संख्या बहुत ही शर्मनाक झलक प्रस्तुत करती है:

पद संख्या पुरुष समतुल्य की प्रतिशतता
पुलिस महानिदेशक/ विशेष महानिदेशक/ अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक 16 4%
पुलिस महानिरीक्षक 44 7.8%
पुलिस उप महानिरीक्षक 20 3.2%
अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/ पुलिस अधीक्षक/ कमिश्नर 190 6.7%
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक/ उप कमिश्नर 162 6.9%
सहायक पुलिस अधीक्षक/ उप पुलिस अधीक्षक/ सहायक कमिश्नर 496 4%
निरीक्षक 1,234 3.8%
उप निरीक्षक 5,668 4.4%
सहायक उप निरीक्षक 3,553 2.8%
हवलदार 8,246 2.3%
सिपाही 85,696 5.2%
कुल 1,05,325  

जैसे कि अन्य मामलों में महिलाएं केवल सिपाही और हवलदार पदों तक ही सीमित हैं उसी तरह पुलिस महानिदेशक/ विशेष महानिदेशक / अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के कुल 396 पदों में से केवल 16 पदों पर महिलाएं पदस्थ हैं, 607 पुलिस उप महानिरीक्षकों में केवल 20 और निरीक्षक के 31754 पदों में से 1234 पर महिलाएं विराजमान हैं। उच्च पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व मामूली तौर पर इसलिए अधिक है क्योंकि उन पदों पर सभी कार्मिकों की संख्या न्यूनतम है। इस बात पर बल दिए जाने की आवश्यकता हैं कि जिन पदों व स्तरों पर पैदा हुई गंभीर समस्या को यह आंकड़े दर्शाते हैं उन पर ध्यान दिए जाने के लिए ठोस प्रयास किए जाने जाएं। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो इन आंकड़ों को नियमित तौर पर एकत्रित करे, उनका मिलान करे ताकि उन नीति-नियंताओं को तुरंत इनके बारे में सूचित किया जा सके जिन्हे इस कार्य को करने का कर्तव्य सौंपा गया है या जो यह कार्य करने की स्थिति में हैं।

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