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बहादुरी के मील के पत्थर

बहादुरी के नए कीर्तिमान

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की स्थापना के दिन से ही इसका इतिहास वीरता भरे कारनामों और शौर्य गाथाओं से भरा हुआ है। केरिपुबल इस प्रकार के कारनामों की बदौलत दिन ब दिन मजबूत होता गया है। यह बल इसकी कार्यप्रणाली और गतिविधियों की दृष्टि से राज्‍यों के डकैती रोधी ऑपरेशनों और आंतरिक कानून-व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्यों मात्र के लिए न केवल पुलिस बल रहा है, अपितु आज इसकी ड्यूटियां आतंकवाद और विद्रोहियों से मुकाबले के लिए इसके मूल कार्यक्षेत्र से परे और अधिक बढ़ती जा रही हैं।

ड्यूटी के लिए दृढ़-निष्‍ठा की गाथा, कुछ शानदार उपलब्धियां और उल्लेखनीय बलिदानों की दास्तान भविष्‍य में लंबे समय तक बल के सदस्यों को प्रेरित करती रहेगी।

हमें हमारे सभी नायकों, जिनमें कुछ ज्ञात हैं और कुछ अज्ञात हैं, को याद रखना है। हम उन सभी को सलाम करते हैं। हमारे मानसपटल पर हमेशा ऐसे कई मौके आते हैं जब हम बलिदान, मातृभूमि के लिए स्‍नेह और इसकी एकता और अखंडता और हमारे अपने कार्मिकों की बहादुरी को याद करते हैं और इनमें से कुछ स्मृतियां कृतज्ञ राष्ट्र की लोकगाथाएं भी बन चुकी हैं, ये सभी इन मौकों पर इसके शूरवीर पुलिस कार्मिकों का स्मरण करते हैं और देश के पुलिस शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं।

हॉट स्प्रिंग

यह केरिपुबल ही थी जिसने 21 अक्‍तूबर, 1959 को हॉट स्प्रिंग (लद्दाख) में हुए चीनी हमले जिसमें केरिपुबल के एक छोटे गश्ती दल पर बहुत भारी संख्या में चीनियों ने घात लगा कर हमला किया था, का सामना किया। इस आकस्मिक हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 10 जवानों ने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनकी शहादत को पूरे भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष 21 अक्‍तूबर को ‘’पुलिस स्मृति दिवस’’ के रूप में मनाया जाता है।

प्रारंभ में केरिपुबल को जो अति जोखिम भरे कार्य सौंपे गए, उनमें भारत-तिब्बत सीमा पर अक्साईचीन के निकट की ड्यूटी भी थी। बल के द्वारा सेवा व बलिदान के रूप में किए गए अनुकरणीय कार्य आज भी हम सबको प्रेरित करते हैं।

1953 के बाद से, लेह (लद्दाख) और इसकी सीमांत चेक पोस्‍टों पर केरिपुबल की एक कंपनी की तैनाती पवित्र विश्‍वास बन गई। अक्साई क्षेत्र के जंगल, दुर्गम इलाके, सुनसान बंजर पहाडि़यां, ठण्‍डी बर्फीली हवाएं आदि भी केरिपुबल के जवानों को दिन-रात मातृभूमि की सीमा की रक्षा करने से नहीं रोक पाई। यह एक ऐसा दिन था, जब उपजते चीनी आंदोलन और आस-पास मौजूद खतरे के संज्ञान के साथ केरिपुबल की छोटी सी पेट्रोलिंग पार्टी तिब्‍बत की सीमा के पास से गुजरते हुए इस तथ्‍य से अंजान थी कि वे अपने लिए इतिहास लिखने जा रहे थे।

यह 21 अक्‍तूबर, 1959 का दिन था, जब सिपाहियों के छोटे किन्तु समर्पित समूह पर ‘’हॉट स्प्रिंग’’ नामक स्‍थान पर चीनी सैन्य टुकडि़यों द्वारा स्‍वचालित हथियारों से भीषण फायरिंग की गई। उनमें से हर एक ने वीरतापूर्वक केवल इस जज्‍बे के साथ मोर्चा संभाला कि वे अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए आक्रांता को खदेड़ देंगे। उस क्षण उन्‍हें अन्य किसी चीज से मोह नहीं रह गया था। केरिपुबल की उस टुकड़ी ने एक बड़ी संख्या में बेहतर हथियारों से लैस प्रशिक्षित सेना से लोहा लेने में अद्वितीय साहस का परिचय दिया। 10 जवानों ने अपने जान से प्रिय उद्देश्‍य अर्थात देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।

इस घटना ने हॉट स्प्रिंग को केरिपुबल के लिए एक पवित्र स्थान बना दिया। इस दिन को देश के समस्त पुलिस बलों द्वारा शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हमारी उपलब्धियाँ की बदौलत ही उस दिन बल ने भारतीय पुलिस के लिए ना केवल ‘’कॉर्पस-डि-एलाइट’’ के सम्मान की रक्षा की, अपितु इसके 10 जवानों के शौर्यपरक बलिदान की कीमत पर अपनी भूमिका को पर्याप्त रूप से साबित भी किया और दुश्मन सेना के इस पवित्र भूमि पर कब्‍जा करने के कुटिल प्रयासों को विफल भी किया।

Hot Spring

सरदार पोस्ट का युद्ध

हॉट स्प्रिंग की ठण्डी हवाओं से कच्‍छ के रण (गुजरात) में सरदार पोस्ट की रेगिस्‍तानी हवाओं व झुलसाने वाली गर्मी में भी मातृभूमि के प्रति प्‍यार और सर्वोच्च बलिदान के लिए उनकी तत्परता ने हमारे वीर जवानों की छोटी टुकडि़यों को दुश्मनों पर अंकुश लगाए रखने में सक्षम बनाए रखा और उन्‍होंने दुश्मनों के नापाक इरादों को ध्वस्त करने के लिए अंत तक मोर्चा संभाले रखा।

वर्ष 1965 में कच्‍छ के रण में सरहद पर पाकिस्तान के आक्रामक मनसूबों को देखते हुए, 2 बटालियन केरिपुबल की चार कंपनियों को, अन्य बातों के साथ-साथ, सीमा चौकी स्थापित करने के लिए आदेश दिया गया। 8 और 9 अप्रैल की मध्य-रात्रि के अंधेरे में पाकिस्तान की 51वीं इन्फेंटरी ब्रिगेड के 3500 जवानों, जिनमें 18 पंजाब बटालियन, 8 फ्रंटियर राइफल्स और 6 बलूच बटालियन के थे, ने गुपचुप तरीके से हमारी सीमा की पोस्टों पर ऑपरेशन ‘’डिजर्ट हॉक’’ के तहत आक्रमण कर दिया। यद्यपि ऑपरेशन ‘’डिजर्ट हॉक’’ को नियोजित करने वालों ने इसे तैयार करने में किसी कमी की गुंजाइश नहीं छोड़ी थी, लेकिन वे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की उस छोटी टुकड़ी की सुक्षमता और दृढ़ता का आंकलन करने में असफल रहे। शांति वार्ता के प्रस्ताव से बहकाने की पाकिस्तानी रणनीति के बावजूद सरदार पोस्ट की चौकसी कर रहे हमारे जवान मुस्तैद थे।

उस समय हवलदार रणजीत सिंह मशीन गन के साथ सरदार पोस्ट पर ड्यूटी पर थे। उसने उत्तर दिशा में 50 से 100 गज की दूरी पर कुछ हलचल देखी। दुश्‍मन की हलचल का अंदेशा होते ही उसने घुसपैठियों को चुनौती दी, प्रत्युत्तर में दूसरी ओर से फायरिंग शुरू हो गई और यह पाकिस्तानी बलों के लिए मोर्टार व 25 पाउण्डरों से गोलीबारी का संकेत था। परिणामस्वरूप सरदार व टक पोस्ट में केरिपुबल की 2 बटालियन की चार कंपनियों पर एक ब्रिगेड ने पूरी ताकत से समानांतर हमला शुरू कर दिया। पोस्ट के कार्मिकों ने मोर्चा संभाल लिया और उनके पास मौजूद असले को अंत तक बचाए रखने के लिए सांस रोक कर दुश्मन को समीप आने दिया। मरघट जैसी शांति ने पाकिस्तानियों को यह अहसास कराया कि सरदार पोस्ट के सभी जवान या तो मर चुके हैं या गोलीबारी में घायल हो चुके हैं।

The Battle Of Sardar Post

सरदार पोस्ट पर तैनात सिपाही शिव राम को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने 600 गज दूर से खतरनाक तोप सेना और मोर्टारधारी दुश्मन की हरकत का संज्ञान ले लिया था। इसका पता लगते ही सूबेदार बलबीर सिंह ने शत्रु के आउट-पोस्ट को नष्ट करने के लिए अपने मोर्टार से फायर किया। हमलावर कॉलम ने अब पोस्ट की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और इसके नजदीक पहुंचने लगी। पोस्ट में किसी के जीवित बचने का कोई संकेत नहीं मिल रहा था। हमलावर कॉलम के 20 जवान पोस्ट के बिल्‍कुल नजदीक आ गए तभी पोस्ट की तीनों मशीन गन जीवित हो उठी और उनके जानलेवा फायर ने शत्रुओं को चित कर दिया। कुछ ही क्षण में सभी मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। पीछे से हमला करने वाली दुश्‍मनों की दूसरी खेप का भी अपने पूर्ववर्ती साथियों की तरह हश्र हुआ। इस हमले में 14 जवान मारे गए और 4 व्यक्ति जीवित पकड़े गए। दुश्मन फौज को एक सफलता यह मिली की पूर्वोत्तर छोर के पोस्‍ट की मशीन गन जाम हो गई, लेकिन केरिपुबल के जवानों ने त्‍वरित कार्रवाई करते हुए काउंटर अटैक जारी रखा और दुश्मन को पीछे धकेल दिया।

यद्यपि दुश्‍मन फौज लड़खड़ा गई तथापि वे पोस्ट कमांडर मेजर सरदार करनैल सिंह और 19 केरिपुबल जवानों को बंदी बनाने में सफल रहे। एक घंटे तक दोनों ओर से गोली-बारी जारी रही, जिसके दौरान दुश्मन ने पोस्ट पर कब्‍जा करने के लिए तीन बार प्रयास किए लेकिन उन्‍हें भारी जनहानि के साथ पीछे हटना पड़ा। सरदार पोस्ट के पूर्वी छोर पर हवलदार भावना राम ने उसके पास की एम.एम.जी. के शांत होने पर उसकी पोस्‍ट के सभी ग्रेनेड इकट्ठे किए और पास आने का प्रयास कर रही दुश्मन फौज पर एक के बाद एक फेंकना जारी रखा। उसका यह बहादुरी भरा कारनामा घुसपैठियों के मनोबल को हतोत्साहित करने और उन्‍हें पोस्ट से दूर रखने के लिए काफी देर तक जारी रहा।

केरिपुबल के द्वारा की जा रही जवाबी कार्रवाई ने दुश्मन फौज को इस प्रकार हतप्रभ किया कि भारी संख्या और बेहतर हथियारों के बावजूद उन्‍होंने दूसरे हमले का प्रयास नहीं किया। केरिपुबल के जवान अपनी सुरक्षा व अपने प्रियजनों को विस्मृत करके अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कर्त्‍व्यपथ पर तत्‍पर रहे। उनकी इस कार्रवाई को कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा सराहा और पहचाना गया। इस प्रकार के युद्ध सरीखे कुछ दृष्टांत ही हैं। तत्कालीन गृह मंत्री ने इसे पुलिस युद्ध के बजाय ‘’सैन्य युद्ध’’ की संज्ञा से बिल्‍कुल सही संबोधित किया था।

उस ऐतिहासिक क्षण के आलोक में बल का ‘’शौर्य दिवस’’ मनाने व उन रणबांकुरों के सेवा और बलिदान की प्रशंसा के लिए अब पुराने अभिलेखों को खंगालने की आवश्‍यकता नहीं होगी।

Militant Attack On Indian Parliament Foiled

भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले को नाकाम किया

13 दिसंबर 2001 को आतंकवादियों द्वारा भारतीय संसद पर किया गया आत्‍मघाती हमला बल के बहादुर जवानों को उनके साहस का परिचय देने का दिवस था।

केरिपुबल और आतंकवादियों के बीच 30 मिनट तक चली परस्‍पर गोलीबारी में पांचों आतंकवादियों को मार गिराया गया। इस मुठभेड़ में कर्तव्यपथ के आह्वान पर उत्कृष्ट साहस और सूझबूझ का परिचय देते हुए एक महिला सिपाही ने अपने जीवन का बलिदान दे दिया।

इस अभियान में केरिपुबल के जवानों की भूमिका को प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित संसद के दोनों सदनों ने मुक्त कंठ से सराहा। इस मुठभेड़ में प्रदर्शित शौर्य के मूल्यांकन में दिनांक 26 जनवरी, 2002 को स्वर्गीय महिला सिपाही को ‘’अशोक चक्र’’ एवं 4 जवानों को ‘’शौर्य चक्र’’ प्रदान किया गया।

राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद अयोध्‍या पर हमला नाकाम किया

Shaurya Chakra Awarded by President of India Shaurya Chakra Awarded by President of India

5 जुलाई, 2005 को जब 5 सशस्‍त्र आतंकवादियों ने अयोध्‍या में राम जन्म भूमि/बाबरी मस्जिद परिसर को ध्वस्त करने एवं बाहरी सुरक्षा रिंग को भेदने का प्रयास किया, तब आंतरिक सुरक्षा रिंग में तैनात केरिपुबल ने उन्हें चुनौती दी। हमारे जवान बहादुरी से लड़े और उन्‍होंने आतंकवादियों के नापाक इरादों को विफल करते हुए उन्‍हें सफलतापूर्वक मौके पर ही मार गिराया।

श्री विजेतो तिनयी, सहायक कमांडेंट और श्री धरमबीर सिंह, हवलदार जिन्‍होंने उत्कृष्ट शौर्य का प्रदर्शन किया, को भारत के महामहिम श्री ए.पी.जे. अब्‍दुल कलाम द्वारा ‘’शौर्य चक्र’’ से नवाजा गया।

कीर्ति चक्र विजेताओं का परिचय

205 बटालियन, केरिपुबल के विशिष्ट कोबरा बल के सिपाही भृगु नंदन चौधारी को माओवादियों के हमले में मौत के साये के बीच दृढ़ता, असाधारण साहस व उल्लेखनीय वीरता के प्रदर्शन के लिए मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया।

 

शहीद भृगु नंदन चौधरी, इस वीर सिपाही ने बिहार के गया जिले के चाकरबांधा वन क्षेत्र में नक्सलवादियों के विरूद्ध भीषण गोलीबारी के दौरान निर्भीकता का परिचय दिया। आई.ई.डी. धमाके से क्षत विक्षत शरीर व दोनों पांवों में लगी चोटों की परवाह किए बिना, सिपाही भृगु नंदन चौधरी ने मर्मान्तक दर्द की पीड़ा झेलते हुए क्राउलिंग करके पास ही कोने में पोजिशन ली और अडि़ग रहते हुए नक्सलवादियों पर गोलीबारी जारी रखी।

उसने अपने साथी सिपाही दलीप सिंह की मैगजीन बदलने और अन्य साथियों की मदद में भी निर्भीकता का परिचय दिया। उसने बहादुरीपूर्वक आगे बढ़ रहे नक्सलियों को मार गिराया और कई नक्सलियों को घायल कर दिया। अंतत: यह बहादुर सिपाही शहादत का वरण करने से पहले अपने ध्येय में कामयाब हुआ। उसने अपने दल को घायल होने और उनके हथियारों को छिनने से बचा लिया था। करीब 2500 वर्ष पहले एक महान ग्रीक इतिहासविद् थुसिडाइड्स ने कहा था, ‘’निश्चितरूप से वही व्‍यक्ति सबसे बड़े वीर हैं, जिनके पास स्पष्ट ध्येय है कि उन्हें किसका सामना करना है। उनके लिए यश और जोखिम में कोई अंतर नहीं है। यदि ऐसा है तो आप जाइए और उनसे मुलाकात कीजिए।‘’ नि:संदेह उनके दिमाग में सिपाही भृगु नंदन चौधरी जैसे लोग ही रहे होंगे।

शौर्य चक्र विजेताओं का परिचय

202 कोबरा बटालियन के कांस्‍टेबल आशीष कुमार तिवारी को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। 26 जुलाई 2010 को उनके प्रमुख नेताओं सिद्धु शोरेन और बुरू सहित 20-25 नक्सलियों की गतिविधियों के बारे में विशिष्ट जानकारी मिलने पर, सीआरपीएफ के सैनिक सर्च ऑपरेशन के लिए काम्या गांव में जा पहुंचे, जो पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले से सटा जंगली क्षेत्र है।

सिपाही आशीष कुमार तिवारी, 202 कोबरा बटालियन को मरणोपरांत ‘’शौर्यचक्र’’ से नवाजा गया।

26 जुलाई, 2010 को पश्चिमी बंगाल के वेस्ट मिदनापुर जिले से सटे जंगल क्षेत्र एवं काम्या गांव में 20-25 नक्‍सलवादियों जिनमें उनके वरिष्ठ नेता सिधु सोरेन और बुरू भी थे, के मूवमेंट की विशिष्ट सूचना पर केरिपुबल ने तलाशी अभियान चलाया। हमारी टुकडि़यों ने नक्सलवादियों द्वारा की जा रही अंधाधुंध फायरिंग और कई आई.ई.डी. विस्‍फोटों का मुंहतोड़ जवाब दिया और यह मुठभेड़ 2 घंटे तक चली। इस मुठभेड़ में सिपाही/जीडी आशीष कुमार तिवारी ने असाधारण वीरता का परिचय दिया और वे गोलियां लगने से बुरी तरह घायल हो गए। अंततोगत्वा इन चोटों से वे वीरगति को प्राप्‍त हुए। तत्पश्‍चात चलाए गए तलाशी अभियान में सबसे बड़े माओवादी नक्सली नेता सिधु सोरेन, पी.सी.पी.ए. के सचिव और एस.के.जी.एम. के नेता सहित 6 नक्‍सलियों के शव बरामद किए गए। इसके अलावा हथियारों व गोलाबारूद का एक बड़ा जखीरा भी वहां से बरामद किया गया।

श्री रवीन्द्र कुमार सिंह, सहायक कमांडेंट, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल

लेहरदगा (झारखण्‍ड) में हुरमुर वगणेशपुर की पहाडि़यों में नक्सली दस्ती की उपस्थिति संबंधी आसूचना इनपुटों के आधार पर श्री रविंद्र कुमार, सहायक कमांडेंट की कमान में केरिपुबल व सिविल पुलिस के एक संयुक्त दल ने 0430 बजे ऑपरेशन के लिए प्रस्थान किया। हुरमुर जंगल क्षेत्र में पहुंचते ही दल ने छोटे नाले के पास झाडि़यों व चट्टानों से घिरे घुमावदार मोड़ को पार किया। यह जगह दो पर्वत श्रृंखलाओं से घिरी हुई थी। जब दल इस मार्ग से लगभग 1 मिलोमीटर गुजरा ही था कि अकस्मात् एक साथ कई धमाके 800 मीटर की दूरी में होने लगे। इन धमाकों से श्री आर.के. सिंह, सहायक कमांडेंट के बायें पैर में गंभीर चोटें आईं व दल के कई जवान घायल हो गए। माओवादियों ने भारी संख्या में आस-पास के क्षेत्रों से भीषण गोलीबारी शुरू कर दी। संयुक्‍त दल ने घायल होने के बावजूद भी बहादुरीपूर्वक नक्सलियों के फायर का जवाब देना जारी रखा।

श्री आर.के. सिंह ने गंभीर चोट व घायल अवस्था में होने के बावजूद धैर्यपूर्वक वरिष्ठ अधिकारियों को स्थिति के बारे में सूचना देना जारी रखा। साथ ही वे अपने दल को लड़ते रहने और नक्सलियों के दांत खट्टे करने के लिए प्रेरित भी करते रहे। उनकी प्रेरणा से दल में नव-चेतना का संचार हुआ और वे द्रुत गति से नक्सलियों का मुंह तोड़ जवाब देने लगे।

श्री सिंह ने अपने घावों को तारनीकेट से बांध कर नक्सलियों पर फायरिंग जारी रखी। उस लोकेशन पर बाहरी मदद व बचाव दल के पहुंचने तक वे जोर-शौर से दल की अगुवाई करते रहे। उनके इस शौर्यपूर्ण प्रयास की बदौलत नक्सली अधिक बेहतर पोजिशन में होने के बावजूद हथियार छीनने व नरसंहार के नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो पाए।

श्री आर. के. सिंह, दृढ़-निश्चय, असाधारण साहस और बहादुरी से लड़े और बहुत गंभीर चोटों के बावजूद माओवादियों के आगे हथियार डालने की बजाय अपनी टुकड़ी को दिशा-निर्देश देते रहे। उन्‍होंने न केवल माओवादियों की योजना को नाकाम किया वरन् प्रतिकूल परिस्थिति में कार्य करते हुए सुरक्षा कार्मिकों के हथियारों को भी सुरक्षित बचा लिया।

श्री नागेन्द्र सिंह, सहायक कमांडेंट और श्रीविजोज पी. जोसेफ, सहायक कमांडेंट, 207 कोबरा बटालियन, ग्रुप केंद्र, केरिपुबल, दुर्गापुर, पश्चिमी बंगाल

पुलिस अधीक्षक ,पश्चिम मिदनापुर के झारग्राम से 13 किमी दूर स्थित बुरिसोल गांव के उत्‍तर पूर्व जंगली क्षेत्र में 5-7 सशस्त्र माओवादियों के मूवमेंट की सूचना के अनुसरण में, एक संयुक्‍त अभियान की योजना बनाई गई। विभिन्न बिन्दुओं पर दो टीमों को छोड़ा गया। वे लक्ष्य क्षेत्र की ओर बढ़े और करीब 1600 बजे आर.वी. पहुंच गए। जब दो कोबरा बटालियनों के विशेष कार्मिकों से लैस एक स्मॉल प्रोबिंग टीम लक्ष्य क्षेत्र का मुआयना कर रही थी तो वह माओवादियों की भीषण गोलीबारी से घिर गई जिससे बल के कार्मिक बहुत ही जोखिम भरी स्थिति में आ गए।

कोबरा के दो बहादुर कमांडरों, श्री नागेन्द्र सिंह और श्रीविजोज पी. जोसेफ ने अपनी जान की परवाह किए बिना, फायरिंग की दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय लिया। पहला कदम बढ़ाते ही श्रीनागेंद्र सिंह को गोली लगी और वे ग्रेनेड के स्पिलिंटर से घायल हो गए जबकि विजोज पी जोसेफ गोलियों की बौछारों से बाल-बाल बच गए। इसके बावजूद, उन्‍होंने इशारों से आगे बढ़ने व दुश्‍मन गुफा से 10-15 मीटर की दूरी के नजदीक जाने के लिए परस्पर दृढ़ता दिखाई। दोनों अधिकारियों और माओवादियों के बीच भीषण गोलीबारी शुरू हो गई। दोनों कमांडरों द्वारा 5 कार्मिकों की छोटी सी टुकड़ी के साथ गोली की तेजी से अकस्मात किए गए काउंटर अटैक ने न केवल अन्य कार्मिकों को घायल होने या जनहानि से बचाया वरना माओवादियों के इरादों को भी नाकाम कर दिया। फायरिंग रूकने के बाद, उस क्षेत्र का गहन तलाशी अभियान चलाया गया जिसमें एक शव के हाथ में एक ए.के.-47 राइफल बरामद हुई। मृतक की बाद में कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी के रूप में शिनाख्त हुई।

207 कोबरा बटालियन के श्री नागेन्द्र सिंह और श्रीविजोज पी जोसेफ, सहायक कमांडेंट ने माओवादियों के विरूद्ध चलाए गए ऑपरेशन में असाधारण साहस, प्रेरक नेतृत्व और दृढ़ निश्चय का प्रदर्शन किया।

List of Gallantry - Medals / Awards as on 15/08/2020

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